Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
12 May 2024 · 1 min read

लौट चलें🙏🙏

लौट चलें 🙏🙏
🔵🔵🔵🔵🔵
सृष्टि माता का एक नगीना
प्रकृति के विस्तृत अंगन में
सूक्ष्म अंश अनन्त के पार
नगण्य भाग अणु परमाणु

अंशों मेंअंशों का अंशदान
मूक बधिर दृष्टिहीन बिहान
स्वर सुंदर गूंजन पलक हीन
श्रवणविहीन अनुभवहीन था

अंग लाल भस्म रमाया था
वेदना दर्द बेसुमार पड़ा था
उछल कूद चिल्लाते स्पर्श
नूतन दुनियाँ हाथ पैर चला

जननी से पाया उत्थान था
धर्म कर्म श्रम में यौवनारंभ
जगत जीव दहलीज़ के पार
अदृश्य अलौकिक ब्रह्मांडों में

भ्रमण भ्रमित सूक्ष्म अंश पुंज ।
सर्वजन दूर शून्य में प्राण था
भूख प्यास तीखा समीर जल
दिशा शान्त गगन निस्तब्ध था

तट सरिता तरुहीन क्षितिज में
वादी परिवर्त्तन बंधन मुक्त था
अचल सघन अंदर बाहर तमस
अलक जाल ज्योति था विशाल

नटराज नट निरत ताल लुप्त
सृजन संहार हुंकार पाद युगल
शून्य सार परे पार अनन्त पड़ा
कोलाहल प्रलय शांति निश्चल

वह मधुर मिलन हृदय प्रवाह था
विगत बातों की यादों दूर निकल
जैसी करणी वैसी भरणी अनुभव
शांति प्रान्त मुक्तिधाम लौट चला

हे प्राणी ! करले अपनी भूल सुधार
विष मत फैलाओ नेक कर्मो धर्मो
जीवन प्रवाह में अमृतपान यतन
कर्म किए जा फल की इच्छा मत

कर ऐ इंसान जैसे कर्म करेगा वैसे
फल देगा भगवान । ये हैं गीता का
ज्ञान । हरपल याद रखना ऐ इंसान
तेरा क्या जो दिक् भ्रमित हो इंसान

🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵🔵

तारकेशवर प्रसाद तरूण

Language: Hindi
1 Like · 1 Comment · 141 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
View all

You may also like these posts

क्या जिंदगी थी
क्या जिंदगी थी
सिद्धार्थ गोरखपुरी
" चले आना "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
#लघु कविता
#लघु कविता
*प्रणय प्रभात*
छंदमुक्त काव्य?
छंदमुक्त काव्य?
Rambali Mishra
मैं शब्दों का जुगाड़ हूं
मैं शब्दों का जुगाड़ हूं
भरत कुमार सोलंकी
***नयनों की मार से बचा दे जरा***
***नयनों की मार से बचा दे जरा***
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
चमचा चरित्र.....
चमचा चरित्र.....
Awadhesh Kumar Singh
जां से गए।
जां से गए।
Taj Mohammad
चाहत
चाहत
Sarla Sarla Singh "Snigdha "
दहेज
दहेज
Mansi Kadam
प्रकृति की गोद
प्रकृति की गोद
उमा झा
दिल पहले शीशा था,अब पत्थर बना लिया।
दिल पहले शीशा था,अब पत्थर बना लिया।
Priya princess panwar
कितना और सहे नारी ?
कितना और सहे नारी ?
Mukta Rashmi
27. कैसी दास्तां है
27. कैसी दास्तां है
Rajeev Dutta
दिल तक रखते
दिल तक रखते
Dr fauzia Naseem shad
" कभी "
Dr. Kishan tandon kranti
!..........!
!..........!
शेखर सिंह
*तेरे इश्क़ में*
*तेरे इश्क़ में*
AVINASH (Avi...) MEHRA
हम भी कैसे....
हम भी कैसे....
Laxmi Narayan Gupta
ढलती साँझ
ढलती साँझ
शशि कांत श्रीवास्तव
बुद्ध होने का अर्थ
बुद्ध होने का अर्थ
महेश चन्द्र त्रिपाठी
* भावना स्नेह की *
* भावना स्नेह की *
surenderpal vaidya
காதல் என்பது
காதல் என்பது
Otteri Selvakumar
उनकी आंखो मे बात अलग है
उनकी आंखो मे बात अलग है
Vansh Agarwal
काश राधा की तरह मेरी भी मुहब्बत होती
काश राधा की तरह मेरी भी मुहब्बत होती
कृष्णकांत गुर्जर
*दोहा*
*दोहा*
Ravi Prakash
फूल भी हम सबको जीवन देते हैं।
फूल भी हम सबको जीवन देते हैं।
Neeraj Kumar Agarwal
बेबसी
बेबसी
धर्मेंद्र अरोड़ा मुसाफ़िर
मनभावन जीवन
मनभावन जीवन
Ragini Kumari
4277.💐 *पूर्णिका* 💐
4277.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Loading...