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11 May 2024 · 1 min read

एकांत ये घना है

शीत की निशा है,
एकांत ये घना है,
हवा में है ठिठुरन,
कुछ कंठ भी रुंधा है…

सहज सोच व्याकुल,
स्मृतियों का संग है,
वो विस्मृत से पन्ने,
मेरे साथ अंतरंग है…

एक तीखी सी सिहरन,
तभी आ के बोली,
उद्विग्न क्यों है तू ?
यही जीवन तरंग है…

उबासियों का हासिल,
एक नींद बस नहीं है,
उनींदी आँखों का भी,
एक अपना ही रंग है…

© विवेक’वारिद’*

Language: Hindi
103 Views
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