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10 May 2024 · 1 min read

संभवतः अनुमानहीन हो।

संभवतः अनुमानहीन हो,
ये जग कितना एकाकी है।

दीयों का मेला दिवाली,
वे समूह में मुस्काते हैं,
दूर से देखो तो लगता है,
एक ही सुर में सब गाते हैं,
पर क्या तुमने गौर किया है,
सब में बस इक ही बाती है,
संभवतः अनुमानहीन हो,
ये जग कितना एकाकी है।

ठौर ठौर पर नगर बसे हैं,
अनगिन घाट सुशोभित करते,
लाखों अपनी प्यास बुझाते,
लाखों उसके तट पर रहते,
कितने ही उर तर करती है,
पर खुद ही वो चिर प्यासी है,
संभवतः अनुमानहीन हो,
ये जग कितना एकाकी है।

बर्फीले देशों से पंछी,
इक समूह में उड़ते आते,
उनमें यदि थक जाए कोई,
दूजे पंख नहीं दे पाते,
हर कोई अपना हित लेकर,
इस जग नभ में सहभागी है,
संभवतः अनुमानहीन हो,
ये जग कितना एकाकी है।

कुमार कलहंस।

Language: Hindi
Tag: गीत
1 Like · 126 Views
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