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9 May 2024 · 2 min read

आभार

नैन दिए जग देखन को और मन को इसका सार दिया
दिए हैं उसने रिश्ते नाते और प्यार की खातिर परिवार दिया,
दिया है जिसने नील गगन ये और जिसने रचा संसार है
सर्वव्यापी और अनदेखा है वो एक अद्भुत कलाकार है।

सर्वप्रथम मैं परमपिता परमात्मा और अपने उन सभी गुरुजनों की आभारी हूँ, जिन्होने अपनी कृपा और अमूल्य ज्ञान दान द्वारा मुझे इस योग्य बनाया।
आभार प्रकट करती हूं- उस ईश्वर का जिसने मेरे जैसे एक साधारण प्राणी को सरस्वती मां का वरदान दिया | साथ ही आभार है, जीवन में आए उन विद्वानों और विदुषीयों का जिन्होंने इस जीवन को एक उद्देश्य दिया और जिजीविषा को एक लक्ष्य |
धन्यवाद करती हूं मैं- अपने पिता श्री वीरेंद्र प्रसाद द्विवेदी जी का ,जोकि वायु सेना के योद्धा तो थे ही, वे एक प्रेरणा स्त्रोत भी थे|
एहसान मानती हूं मैं- अपनी मां श्रीमती अन्नपूर्णा द्विवेदी जी का, जिन्होंने हर कदम पर मुझे जिंदगी को सफल बनाने का पाठ सिखाया और सबसे ज्यादा -मेरी आंखों का तारा, उत्कर्ष शर्मा,मेरा पुत्र भी ईश्वर का वरदान है, जिसने मेरे आकाँक्षाओं की लौ को पुनः आलोकित किया |
मैं अपने परिवार के सभी प्रिय सदस्यों की कृतज्ञ हूं| मेरा अत्यधिक मेघावी छोटा भाई, प्रदीप द्विवेदी और मेरी प्यारी सी छोटी बहन, प्रतिभा सिंह -इन से मिला
प्रेम का वो अथाह सागर और कविता कि वह प्यारी किश्ती, जिसमें आज में हिलोरे ले रही हूँ| नवाजिश है – मेरी भाभी श्रीमती दीप्ति द्विवेदी और बहनोई श्री परमजीत सिंह का जिन्होंने कभी भी यह नहीं महसूस होने दिया मेरे द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय अमान्य है|
मेहरबानी है -मेरे जीवन में कुंदन से फरिश्तों की जिनको ईश्वर ने मेरे भांजे -भांजी, भतीजा -भतीजी के रूप में स्थापित किया : पल्लवी द्विवेदी ,युवराज सिंह, परिधि द्विवेदी और युद्धवीर सिंह ।
श्री सुधीर , के. वि. धर्मशाला छावनी के कला शिक्षक ने आवरण -पृष्ठ में अपने सौंदर्य बोध से सतरंगी रंग भरे और श्री मनिंदर ने शब्दों को पृष्ठों पर सार्थक रूप दिया |
कहते हैं की हर एक को अपने जीवन में किसी अप्रत्याशित व्यक्ति से वह संवेदना मिलती है जोकि उसकी इच्छाओं को एक मूर्त रूप प्रदान करने में सहायता करती है | कृतज्ञता प्रकट करती हूं- डॉ राजेंद्र डोगरा सर का , जिन्होने इस काव्य संग्रह को अपने अनुभव, विद्वत्ता एवं कविता के प्रति पूर्ण अनुराग से अलंकृत किया है और अति व्यावहारिक सुझावों से इस काव्य- तीर्थ का पथ प्रकाशित किया है |

श्रीमती पुष्पा शर्मा

Language: Hindi
132 Views
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