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8 May 2024 · 1 min read

एक थी नदी

नदी…..
चिल्लाती है
टूटती अवशेष सी
डूबती श्वासों से
अपशिष्ट के भार से
घुटती हुई
जीवन प्रदायिनी
आज स्वयं
संघर्ष रत है
जीने के लिए
वे विस्तृत घाट
स्मृति शेष
अब बने हैँ जो
अपशिष्ट नगर
नदी…..
खोती अस्तित्व
लिए असहनीय द्वन्द्व
नजर आती हैं
अब कहीं-कहीं
एक गंदे नाले के
स्वरूप में
अरे नर! प्रयत्न तो करना होगा
सिमटती सरिताओं को
सँभालना होगा
उन्हें कर्कटों के ढेर से
निकालना होगा
कहीं आने वाली पीढि़याँ
ये न कहें
कि….
एक थी नदी…..
सोनू हंस✍✍✍

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