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7 May 2024 · 1 min read

जाने हो कब मयस्सर

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1972 में बैंगलोर में लिखी गई
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जाने कब हो मयस्सर दीदार लखनऊ का
इकरार लखनऊ का इसरार लखनऊ का
*
एहसास उनको क्या हो शामे अवध की जन्नत
देखा नहीं जिन्होने बाज़ार लखनऊ का
*
एक मोड़ पर किसी से मिलने की बेकरारी
याद आया मुझको वो दर हर बार लखनऊ का
*
हर पल किसी के आने का, इंतज़ार करना
हमको रुला गया है इज़हार लखनऊ का
*
जो हमको भूल बैठे उनको बता दे कोई
हम ख्वाब देखते हैं हर बार लखनऊ का
*
किसको खबर की हमने कैसे गुज़रे ये दिन
छाया था रूह पर वो गुलज़ार लखनऊ का
*
उनको खबर ही क्या हो क्या गम-ए-लखनऊ है
जिनको हुआ नहीं है आजार लखनऊ का
*
कहने को आ गए हम एक अजनबी शहर में
लाये है साथ अपने हम प्यार लखनऊ का
*
माना की इस चमन में हरसू बहार ही है
नाज़ुक यहाँ के गुल से हर खार लखनऊ का.
@
डॉक्टर //इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव

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