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7 May 2024 · 1 min read

जब कभी परछाई का कद

जब कभी परछाई का कद आपके कद से बड़ा हो
आदमी को चाहिये जाकर अन्धेरे मेँ ख़ड़ा हो

पान का बीड़ा सदा सम्मान का सूचक रहा है
कर ग्रहण ये मान कर शायद ज़हर इसमें पङा हो

हार तो उसकी विजय से भी कहीं ज्यादा सुखद है
जो प्रबलतम शत्रु से सम्मान की खातिर लङा हो

नाग के से पाश का आभास तो देगा सदा ही
वो दुशाला जो अनादर से मिला माणिक जड़ा हो

कर्ण बन कर त्याग दे रक्षा कवच कुण्डल अलौकिक
जब स्वयँ ही इन्द्र बन याचक तेरे द्वारे खड़ा हो
@
डॉक्टर इंजीनियर
मनोज श्रीवास्तव

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