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6 May 2024 · 1 min read

सुहाना बचपन

सोचती हुं बैठे बैठे
क्यो मैं हुई बडीं,
कितना सुहाना था बचपन
क्यों आंख किसी से लड़ी|
चांद सितारे, पंछी बादल
लगते थे सब प्यारे प्यारे,
शादी करके पिहर घर क्या आई,
मां बाप भी हुए पराए|
सुबह शाम कोई गम ना था,
खेलना सोना बस यही काम था,
अब ऐसा लगता है,
ये कोई सपना तो नहीं था|
मां का प्यार बाबा का दुलार,
बहुत याद आती हैं, बचपन कि कहानीयां
क्या कोई लौटा सकता हैं,
बचपन की वो गलियां|

4 Likes · 1 Comment · 139 Views
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