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5 May 2024 · 1 min read

उद्गगार

शब्द नहीं मिलते कैसे बतलाऊँ
हृदय के उदगारों को,
दूँ बुझा या जलने दूँ काया में,
जलते अंगारों को।
उठती है जब जब नजरें,
सब ओर अंधेरा होता है,
क्यों मधुर मिलन की आस लिए
दिल चाहे मस्त बहारों को।
समझाऊँ कैसे पागल मन को,
जाने वाले सब चले गए,
नहीं रहे अब सुनने वाले
मुझ जैसे फनकारों को।
संतोष तुझे अब करना होगा,
झोली में आये कांटो से,
भूलना होगा पगले तुझको,
सुंदर सपनों के संसारो को।
पूनम को क्या मालूम भला,
कैसे होती रात अमावस की,
उसने तो बस देखा है रात चाँदनी,
और चमकते तारों को ।।

जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम

1 Like · 114 Views
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