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5 May 2024 · 1 min read

वक्त रेत सा है

खोज ले इन्सान अपने मन रुपी मीर को,
क्या तू जानता नहीं है मन की तासीर को।
उधेड़ बून लगा रहता कोसता तकदीर को,
समय समय का खेल है बनाता तस्वीर को।।

समय निकल जाता हाथ पीटता लकीर को,
करनी पर फिर रोता पूजत फिरे फकीर को।
कमान हाथ से छूट जाने पर ढूंढता तीर को,
बांधले समय को बंधन में ढूंढले जंजीर को ।।

वक्त रेत-सा है पूछ चाहे किसी अमीर को,
हिलाकर सब रख देता है जागती जमीर को।
कर उपराला कोई निराला वक्त की धीर को,
कुदरत करिश्मा रोकले आंसुओं के नीर को।।

Language: Hindi
2 Likes · 1 Comment · 125 Views
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