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5 May 2024 · 1 min read

आज बुढ़ापा आया है

भरी जवानी बीत गयी, फिर आज बुढ़ापा आया है।
झुक गए कांधे, तन शिथिल,सलवटों का सरमाया है।।

कल था जिन्हें दिया सहारा,पाला पोसा बड़ा किया।
कांधे पर उनको बैठाकर,खुद से ऊंचा खड़ा किया।।

मुझसे बेहतर काम करके वह नाम मेरा कर जाएंगे ।।
प्रेम,दया, त्याग की सुंदर ,विशाल इमारत बनाएंगे।।

उंगली पकड़ के चलना सीखा,वो स्तंभ खड़ा होगा।
बुझते जीवन का अंधियारा,पथ ज्योतिर्मय का होगा ।।

आज हमारी लाठी बनकर उम्मीदों के साथ चला ।
किया सार्थक जीवन उसने संबंधों का रुख बदला।।

नवल पुरातन का संगम,यह अद्भुत खेल दिखाएगा।
विश्वास प्रेम के संबंधों की,अजब मिसाल बनाएगा।।

यह वटवृक्ष हमारे हैं,नदियों का संगम गंगासागर भी।
घूंट-घूट संस्कारों से भी,एक दिन भर जाए गागर भी।।

अपनों से बढ़कर इस जग में ,और न कोई नाता है ।
जिनकी फिकर करेंगे,यह जहां भी उन्हें अपनाता है।।

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