Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 May 2024 · 2 min read

हमने देखा है हिमालय को टूटते

हमने देखा है हिमालय को टूटते
सुनी है उसकी अन्तरात्मा की टीस
स्वयं के अस्तित्व को टटोलता
मानव मन को टोहता

सहज अनुभूतियों के झिलमिलाते रंग फीके पड़ते
एक नई सहर की दास्ताँ लिए
समय के साथ संवाद करता
कहीं दूर आशा की किरण के साथ

फिर से पंखों पर उड़ने को बेताब
हमने देखा है हिमालय को टूटते
अस्तित्व खोता विशाल बरगद जिस तरह
अंतिम पड़ाव पर स्वयं के जीवन के

मानव मन की भयावह तस्वीर पर
चीख – चीखकर पूछ रहा हिमालय
हे मानव तुम कब जागोगे
क्या मैं जब मिट जाऊंगा , तब जागोगे

प्रकृति से ही जन्मा मानव
स्वयं को प्रकृति से भिन्न समझने की
स्वयं की इच्छाओं से बंधा मानव
स्वयं की इच्छाओं के अनियंत्रित प्रमाद में

प्रकृति को रौंदता अविराम
प्रकृति ने हम शिशुपालों को सदियों किया माफ़
अंत समय जब पाप का घड़ा भरा
मानव अपने अस्तित्व को तरसता

स्वयं के द्वारा मर्यादाओं की टीस झेलता
हिमालय , बर्फ रहित बेजान पत्थरों – पहाड़ियों का समूह न होकर
प्रकृति निकल पड़ी है तलाश में
स्वयं के अस्तित्व को गर्त में जाने से बचाने

चिंचित है प्रकृति , हिमालय के अस्तित्व को लेकर
हिमालय कहीं खो गया है
महाकवि कालिदास की रचना
ऋतुसंहार से उपजी हिमालय की अद्भुत गाथा

कालिदास कृत कुमार संभव में हुआ हिमालय का गुणगान
विविधताओं से परिपूर्ण हिमालय
भारत का ह्रदय , भारत का जीवनदाता , पालनहार हिमालय
पर्यावरण संरक्षण रुपी संस्कृति वा संस्कारों की बाट जोहता हिमालय

स्वयम के अस्तित्व को मानव अस्तित्व से जोड़कर देखता हिमालय
बार – बार यही चिंतन करता
क्या जागेगा मानव और जागेगा तो कब
क्या मानव मेरे अस्तित्व हित

स्वयं के हित का प्रयास करेगा
और यदि ऐसा नहीं हुआ तो
हिमालय और मानव किस गति को प्राप्त होंगे
क्या इसके प्रतिफल स्वरूप होगा
एक सभ्यता का विनाश

अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

Language: Hindi
214 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
View all

You may also like these posts

ग़ज़ल(नाम तेरा रेत पर लिखते लिखाते रह गये)
ग़ज़ल(नाम तेरा रेत पर लिखते लिखाते रह गये)
डॉक्टर रागिनी
दीवार -
दीवार -
Karuna Bhalla
गहराई.
गहराई.
Heera S
नगीने कीमती भी आंसुओं जैसे बिखर जाते ,
नगीने कीमती भी आंसुओं जैसे बिखर जाते ,
Neelofar Khan
*उच्चारण सीखा हमने, पांडेय देवकी नंदन से (हिंदी गजल)*
*उच्चारण सीखा हमने, पांडेय देवकी नंदन से (हिंदी गजल)*
Ravi Prakash
..
..
*प्रणय प्रभात*
खुश हो लेता है उतना एक ग़रीब भी,
खुश हो लेता है उतना एक ग़रीब भी,
Ajit Kumar "Karn"
एहसास
एहसास
Shally Vij
अकेले चलना है मुश्किल ,मुझे अपना बना लो तुम !
अकेले चलना है मुश्किल ,मुझे अपना बना लो तुम !
DrLakshman Jha Parimal
मेरी अभिलाषा है
मेरी अभिलाषा है
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
काश! हमारा भी कोई अदद मीत होता ।
काश! हमारा भी कोई अदद मीत होता ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
जीवन से पलायन का
जीवन से पलायन का
Dr fauzia Naseem shad
छलिया है ये बादल
छलिया है ये बादल
Dhananjay Kumar
वो पिता है साहब , वो आंसू पीके रोता है।
वो पिता है साहब , वो आंसू पीके रोता है।
Abhishek Soni
💐तेरे मेरे सन्देश-2💐
💐तेरे मेरे सन्देश-2💐
शिवाभिषेक: 'आनन्द'(अभिषेक पाराशर)
धरती का बुखार
धरती का बुखार
Anil Kumar Mishra
जब तक था मेरे पास धन का खजाना। लगा था लोगो का आना जाना।
जब तक था मेरे पास धन का खजाना। लगा था लोगो का आना जाना।
Rj Anand Prajapati
कुछ दुःख होता है जिनसे आप कभी उभर नहीं पाते हैं ,
कुछ दुःख होता है जिनसे आप कभी उभर नहीं पाते हैं ,
Iamalpu9492
कुछ अभी शेष है
कुछ अभी शेष है
Jai Prakash Srivastav
गउँवों में काँव काँव बा
गउँवों में काँव काँव बा
आकाश महेशपुरी
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
डॉ अरूण कुमार शास्त्री
aestheticwednessday
मई दिवस
मई दिवस
Neeraj Kumar Agarwal
3619.💐 *पूर्णिका* 💐
3619.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
अवध-राम को नमन
अवध-राम को नमन
Pratibha Pandey
सब कुछ कह लेने के बाद भी कुछ बातें दफ़्न रह जाती हैं, सीने क
सब कुछ कह लेने के बाद भी कुछ बातें दफ़्न रह जाती हैं, सीने क
पूर्वार्थ
बाजार आओ तो याद रखो खरीदना क्या है।
बाजार आओ तो याद रखो खरीदना क्या है।
Rajendra Kushwaha
सितारों से सजी संवरी एक आशियाना खरीदा है,
सितारों से सजी संवरी एक आशियाना खरीदा है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
समझो साँसो में तेरी सिर्फ मैं हूँ बसाँ..!!
समझो साँसो में तेरी सिर्फ मैं हूँ बसाँ..!!
Ravi Betulwala
सत्य का संधान
सत्य का संधान
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
Loading...