मेलों का मौसम है आया (बाल कविता)
गुमाँ हैं हमको हम बंदर से इंसाँ बन चुके हैं पर
D. M. कलेक्टर बन जा बेटा
Lodhi Shyamsingh Rajput "Tejpuriya"
जो दर्द किसी को दे, व्योहार बदल देंगे।
" महक संदली "
भगवती प्रसाद व्यास " नीरद "
जंगल जंगल में भटक, पांडव किये प्रयास।
कहा किसी ने आ मिलो तो वक्त ही नही मिला।।
कुछ कशिश तिश्नगी में न थी।
वो तारीख़ बता मुझे जो मुकर्रर हुई थी,
सुबह की चाय की तलब हो तुम।
तृष्णा उस मृग की भी अब मिटेगी, तुम आवाज तो दो।
भय आपको सत्य से दूर करता है, चाहे वो स्वयं से ही भय क्यों न
ये जो मुझे अच्छा कहते है, तभी तक कहते है,