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4 May 2024 · 1 min read

काश!

तन थका- थका,
मन बुझा-बुझा,
नयनों से झलके
सिर्फ अवसाद।
जाने कहाॅं खोया
जीवन का मधु स्वाद?
एक सराय बना घर
सुबह शाम सफर
दोपहर में दफ्तर
रात में तेरी याद।
जाने कब कैसे
समय बना सैय्याद?
रीता नेह घट
दुख जीवन तट
अश्कों से होता
एक नया अनुवाद।
जाने क्यों उसे
सुनती नहीं फरियाद?
काश ! सुने वो
कोई गीत गुने वो
मन- वीणा पर छेड़े
मनभावन संवाद।
वीरान हुई बस्ती
फिर हो जाए आबाद।

—प्रतिभा आर्य
चेतन एनक्लेव
अलवर ( राजस्थान)

Language: Hindi
2 Likes · 222 Views
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