Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
4 May 2024 · 2 min read

आखिर क्यों

क्यों स्त्री वुद्ध नहीं हो जाती
क्यों घर छोड़ते ही कुलटा कहलाती
यूँ तो ज्ञान की देवी सरस्वती
लेकिन ज्ञान पर अधिकार नहीं रखती
यूँ तो नवरात्रि में स्त्री माँ हो जाती
कन्या पूजकर सब की तृप्ति हो जाती
आखिर क्यों फिर भ्रूण हत्याएं होती ?
आखिर क्यों बलात्कार की घटनाएँ होती ?
क्यों जंगल में में स्त्री तप नहीं कर सकती ?
क्यों मंगल में स्त्री व्रत नहीं रख सकती ?
ओह इसीलिए स्त्री परम हंस नहीं होती ?
ये तो पुरुष का एकाधिकार क्षेत्र है !
ओह यहाँ तो पुरुषों की लम्बी खेप है !
स्त्री अर्ध नग्न मनोरंजन का साधन !
स्त्री रसोई शयनिका और व्यंग का कारण !
स्त्री की विद्वता सहन नहीं हो पाती !
इसीलिए बन्धन में या मार दी जाती !
वो भी एक रहस्यमयी ढंग से प्रेम की ओट
जी प्रेम का आवरण चढ़ाकर बलि दी जाती
श्रृंगार में उलझकर वुद्धू बनाई जाती
फिर भी यदि कोई करे प्रयास अपना
तो येन केन प्रकारण समाप्त कर दी जाती
हर कहानी उनकी और फिर दबा दी जाती
माँ ममता वात्सल्य प्रेम में लपेटकर
अपने स्वार्थों की आहुति दी जाती
आखिर इसकी उत्तरदाई कौन
अपनी दुर्दशा की ….कौन
स्वयं स्त्री जो बन्ध जाती प्रेम के पाश में
दायित्व के निर्वाह में
क्या स्वयं के प्रति कोई दायित्व नहीं
ओह विचार ही नहीं आया
जो वैदिक ग्रन्थों में उदाहरण भी हैं उन्हें
उजागर किया नहीं जाता
कहीं गार्गी का अश्वनि पुत्रियों को
अंकिन किया नहीं जाता
यदा कदा कोई मिल जाए तो….
बस मीरा राधा में उलझा दिया जाता
मुर्ख स्त्री इसीलिए परम हंस न हो पाती
जानकर भी पारब्रह्म रहस्य को
सतत सदा उलझी ही रहती
मिथ उपलब्धियों में और संबंधो के पाश में
भटकती ही रहती ..यही सत्य है
कड़वा और नंगा

……………….

Loading...