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3 May 2024 · 2 min read

आश्रम

#आश्रम#

जमाने के अजीबो गरीब
इस चलन को मैने देखा है
पैसों के पीछे भागते यहां
हर शख्स को मैंने देखा है
वो प्रेम वो मोहब्बत
न जाने कहां खो गईं आजकल
जरा सी रंजिश पर खून और कतल
होते मैंने देखा है

चेहरे पे बुजुर्गों के आज
वो खुशी दिखाई नहीं देती
आंखों में उनकी अब
वो रोशनाई दिखाई नहीं देती
पुश्तैनी जमीन जायदाद की तरह
हमने बांटा है उनको
हस्ती दोनों की आजकल
एक ही घर में दिखाई नहीं देती

भरोसा आदमी का आदमी से
आज उठता जा रहा है
अपने ही परिवार से इंसान
अब दूर होता जा रहा है
गांव की खुली आबो हवा छोड़कर
जब से फ्लैट में आया है
मानवता और मानवीय संवेदनाएं भी
खोता जा रहा है

कभी बुजुर्गों की निगाहें
हमारे लौटने का इंतजार करती थीं
“आ गए बेटा”…”आज देर कर दी”…
कहकर स्वागत किया करती थीं
अब तो दुम हिलाता और गुर्राता
टॉमी ही मिलता है अक्सर
जहां कभी बुजुर्गों की
सुकून भरी झप्पी मिला करती थीं

बहाना काम का करके
कभी ना बात किया करते हैं
कुछ पूछने पर अक्सर हम
उनको झिड़क दिया करते हैं
हमें पालने की खातिर जिन्होंने
सारा जीवन होम किया हो
उन मात पिता का अक्सर हम
अपमान और तिरस्कार किया करते हैं

कभी सोच के तो देखो
क्या तुम ऐसे ही बड़े हो गए हो
आज जहां पहुंचे हो क्या
अपने आप ही पहुंच गए हो
बिना आशीर्वाद के उनके
तुम्हारा कल्याण नहीं हो सकता
यह पुण्य प्रताप है उनका
तुम जहां आज पहुंच गए हो

कहते हैं भगवान से पहले दर्जा
मात पिता का आता है
पूजने से पहले भगवान को
माता-पिता को पूजा जाता है
पर आज के इंसान की
निष्ठुरता की पराकाष्ठा तो देखिए
जानवर को पालता है और
बुजुर्गों को आश्रम छोड़ आता है

बुजुर्गों को आश्रम छोड़ आता है…।

इति।

इंजी. संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश

Language: Hindi
143 Views
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