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2 May 2024 · 1 min read

पिता

पिता मेरे जीवन के कांटो पर
बनकर फूल बिछ जाते हैं,
मेरे ग़म की परछाइयों पर वटवृक्ष सा बन जाते हैं,
मेरी हर कमजोरी को सहसा ही अनदेखा कर जाते हैं,
मेरा मन पढ़कर मेरे अंतर्द्वंद्व से लड़ जाते हैं।

मेरे जीवन के कांटों पर बनकर फूल बिछ जाते हैं…..

ख्वाहिशों की क्या बात करूं,
गिरवी तक अपना घर रख जाते हैं,
मेरी चाहत के आगे हर तूफान से लड़ जाते हैं,
मेरा मुस्कुराता चेहरा देख, दाव पर जीवन लगा जाते हैं
मेरा मन पढ़कर मेरे अंतर्द्वंद से लड़ जाते हैं…..

बचपन सोचो तो आंखें भर आती हैं,
अब देख बुढ़ापा उनका मेरी तबीयत क्यों घबरातीं हैं,
क्या मैं अपने पिता सा बन पाऊंगा,
जो ताकत जो संयम उनमें है,
क्या मैं भी एक पिता बन दे पाऊंगा,
मेरे सपने उनको अपने ही लगते हैं,
वह पिता है मेरे मुझ पर अपना सर्वस्व लुटा जाते हैं ।
मेरा मन पढ़कर मेरे मेरे अंतर्द्वंद से लड़ जाते है…….

मेरे पिता मेरी ताकत है, मेरी हर स्थिति से वाकिफ है,
मेरे चेहरे की सलवटो को पढ मुझे कंधे से लगाकर,
धीरे से मेरा मन पढ़ जाते हैं, बाजुओं से लेकर,
कंधों तक का बोझ उठाते हैं, अंतर्द्वंद से लड़ जाते हैं,
मेरे जीवन के कांटो पर बनकर फूल बिछे जाते हैं…

मौलिक रचना
हरमिंदर कौर
अमरोहा (उत्तर प्रदेश )

1 Like · 151 Views
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