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2 May 2024 · 1 min read

अंधकार फैला है इतना उजियारा सकुचाता है

अंधकार फैला है इतना उजियारा सकुचाता है
जाते-जाते अंतर्मन में दुःख सा कुछ भर जाता है..

आँख के आँसू सूख नहीं पाते हैं दुख आ जाता है
कैसा निष्ठुर कैसा निर्मम, कितना क्रूर विधाता है..

बने खंडहर संबंधों में क्या सच है क्या मिथ्या है
अन्वेषी होकर भी मन ये जान नहीं क्यों पाता है..

रात पड़ोसी जाग के अपनी खुशियाँ बना रहा था कल
क्या जाने वह मेरे घर में भी दुःख का जगराता है

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