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1 May 2024 · 1 min read

दरवाजों की दास्ताँ…

दरवाजे तो हर घर मे,
खुलते हैं बंद होते हैं,
क़ाबिल-ए-गौर तो ये है,
कि वो किसके लिए,
खुलते और बंद होते हैं…

गैरों के लिए बंद हों,
तो बात भी जायज़ है,
गर अपनों पे बंद हों,
तो मुश्किल का सबब होते हैं…

अपनों से नफ़रतें तब,
उस घर को मार देती हैं,
खूबसूरत दरवाजों मे,
फिर ताले डाल देती हैं…

दब जाती हैं मुहोब्बतें ‘वारिद’,
दिल की गलियाँ सिकुड़ जाती हैं,
‘अंदर आना मना’ है,
फिर ये तख्ती टंग जाती है….

©विवेक’वारिद’ *

Language: Hindi
1 Like · 90 Views
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