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1 May 2024 · 1 min read

अपना अपना सच

“अपना अपना सच”

मेरे शहर में, होड़ लगी है, अपना लोहा मनवाने की
हर व्यक्ति, कोशिश में है, एक सच को झुठलाने की

जिसकी लाठी उसकी भैंस से, अक्ल बड़ी या भैंस, तक का सफर,
जिसे करना हो शौक से करे, हमें क्या ज़रूरत है, कदम बढ़ाने की

रहबरों के दिन गए भाई, अब बिचौलियों का ज़माना आया है,
साधना नहीं, अब सौदे होते हैं, किसे पड़ी है शीश नवाने की

हां ये सच है, उस ने आज तक, कोई किताब, खुद नहीं लिखी है,
लिख भी लेता, तो कौन ज़हमत उठाता, उसे पढ़ने पढ़ाने की

जब उसी ने नावाज़ा है, हम में से हर एक को, अपने नूर से,
अलहदा हैं हम, कहां ज़रूरत है, अब हर रोज़ ये जताने की

शिक्षा का मकसद होता है, हर किसी को, जीने के काबिल बनाना,
जो तालीम, एहसास-ए-कमतरी दे, क्यों कोशिश है उसे सिखाने की

कैसे भुला बैठे हैं आज हम, रिश्ता हमारी चादर का, अपने पैरों से,
आखिर ये कैसी ज़िद है, हमारी, अपने ही घर को सराय बनाने की

कामयाब जीवन का जीना, महज़ इत्तेफ़ाक़ नहीं, एक पुरजोर कोशिश है
ज़रूरत है नेक इरादों और मेहनत की इबादत से इसे यादगार बनाने की

मेरे शहर में, होड़ लगी है, अपना लोहा मनवाने की
हर व्यक्ति, कोशिश में है, एक सच को झुठलाने की

~ नितिन जोधपुरी “छीण”

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