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30 Apr 2024 · 1 min read

“ज्वाला

“ज्वाला

मन के कोहराम को देख ,समीर के दम पर, धधकती है।
खामोश है आराम को देख नीर के जाम पर भड़कती है।

शान्त थी ज्वाला नीर को आते देख , हाथो मे चिंगारी रखा क्यो भड़काती है।
जिन्दगी मेरी ज्वाला को आते देख ,अपनी खामोशी से राख हो गयी

सुरज की तपन से ज्यादा मन का शोर हावि था।
ना भड़कने का कर मुझसे वादा. अग्नि का जोर जारी था

नाना उसके रूप को देख, मेरे ही हाथो अपनो का वो घर जलाती है
चलती थण्डी समीर को देख,, रोती हुयी उस बेचैन मन के नयननीर. ज्वाला को भगाती है

बुझती राख की कालीमा का मुझ सत्कर्म पर सजाती है

Language: Hindi
Tag: Sher, शेर
1 Like · 223 Views
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