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27 Apr 2024 · 1 min read

नौकरी

जरा पैसों की लालच में हम गाव छोड़ आये।
बचपन में देखे हुए वो अधूरे ख्वाव छोड़ आये।

कच्ची मिट्टी की दीवारे और घास का छप्पर,
चहकती हुई गोरैयो के कलरव छोड़ आये।

ये चका चौंद भरी दुनिया ये आँखों के भ्रम मे,
महकते हुए घिनउची पर गुलाब छोड़ आये।
राजेन्द्र “राज”

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