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21 Apr 2024 · 2 min read

औरत

औरत को….
हाँ औरत को बेचारी किसने कहा?
शायद औरत ने ही..
रच कहानियों के तिलिस्म …….
तो कुछ कालजयी रचनाओं ने…
काल के हाथ झुनझुना पकड़ा दिया..
और औरत …..
बस अबला बनकर रह गई ….
आँचल में दूध और आँखों में आँसू लिये हुए
एक की बेचारगी ने..
सारी औरतों को बेचारा बना दिया …
और उन्हें तो ऑनर ही मिल गया …
जिन्होंने अपने पतियों का जीना मुहाल कर रखा था…
जिन्होंने बहू पर अत्याचार की
नई परिभाषायें लिख दी ,
जिन्होंने स्टोव में आग लगा
जान लेने की तरकीबें खोजी..

आज मेरा सवाल है…
“बेचारी” औरतों से..
मुझे एक बेचारी औरत दिखा दो !
घर में ….
ऑफिस में….
रेल की खिड़की पर ……
बस में खड़े झूल रहे आदमियों के बीच
महिला सीट पर ….
समाज में ….
कचहरी में …….
जो स्वच्छंद ना हो !
जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वाले देश में
मौन हो !
दिखाओ एक अबला!
हवाई जहाज में…
समुद्र के तट पर…
रेस्टोरेंट में …
पब में …
बाजार में …
भीड़ में …..
बार में ……
और कवि सम्मेलन में भी……

हाँ चिल्ला कर कहती हूं …
ढूंढ लो एक औरत !
जो बेचारी हो …..
जो अबला हो …..
जिसने बहू बनकर सास को न सताया हो ..
ना सास बनकर बहू को…
जिसने ऑफिस में ,
पुरुषों पर उंगलियां न उठाई हो ….
जो हर आनंद की हिस्सेदार न बनी हो…
जिसने मोहल्ले की औरतों के साथ बैठकर
दूसरे की लड़कियों को बाहर जाते
ना देखा हो..
जो जेठानिया बनकर देवरानियों पर प्रेम बरसाती हो…
जिसने प्रेम में खूब पींगे मारी हो,
पर “हालात” बिगड़ने पर
इल्जाम न लगाए हो…
ढूंढ लाओ एक ऐसी बेचारी औरत !
मुझे उसे माला पहनाना है !
जहां देखती हूं ,
महाशक्ति स्वरूप भुला बैठी है ,
औरत तो शक्ति का पर्याय है…
ऐसा मैंने सुना है, पढ़ा है ,
मैं यह अच्छे से जानती हूं ,
शक्ति सही रूप में प्रयोग होकर
मात्र सृजन करती है…
नहीं तो यही शक्ति !
विध्वंस का कारण बनती है ……
तो कहीं यह शक्ति !
स्वयं का नाश तो नहीं कर रही है….
कहीं शक्ति अबला तो नहीं बन गई?
कहीं अबला अबल तो नहीं कर रही है…

~ माधुरी महाकाश

Language: Hindi
118 Views
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