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21 Apr 2024 · 2 min read

पिछले पन्ने 9

मैट्रिक पास करने के बाद भागलपुर शहर के एक कॉलेज में एडमिशन हो गया था और मैं कॉलेज से सटे बगल वाले मुहल्ले के ही एक लॉज में कमरा लेकर वहीं रहने लगा। कॉलेज की पढ़ाई का स्कूल से बिल्कुल अलग ढंग था। कॉलेज में एडमिशन से पहले कभी भी घर से इतनी दूर बाहर नहीं निकला था। गाॅंव से सीधे शहर पहुॅंच गया था। शुरू-शुरू में तो कॉलेज में किसी लड़का को भी टोकने में एक संकोच होता था और लड़कियों को टोकने के बारे में मैं सपने में भी सोच नहीं सकता था। जबकि वहीं दूसरी ओर लड़कियाॅं तो बिना किसी संकोच के कॉलेज में हॅंसती खिलखिलाती बिन्दास इधर-उधर घूमती नजर आती थी। मैं अगर कभी गलती से भी किसी लड़की के सामने पड़ जाता,तो पूरा शरीर पसीना से तरबतर हो जाता था और हकलाने वाली स्थिति हो जाती। धीरे-धीरे अपने अथक प्रयास से स्वयं को माॅडर्न बनाने के चक्कर में मैं भी उसी वातावरण में ढलने लगा था। मैं आज तक अंडा भी नहीं खाया था। साथ वाले लड़कों को बेधड़क अंडा निगलते देख,विषैले गंध के बावजूद भी मेरी इच्छा अंडा खाने की होती थी, पर कैसे ? मैं सीधा-साधा धर्मावलंबी हिंदू परिवार से आता था, जहाॅं अंडा खाना तो दूर की बात थी, अंडा घर में लाना भी वर्जित था।
उस समय काॅलेज कैम्पस में दो पहिया वाहनों में स्कूटर का काफी क्रेज था। अधिकांश प्रोफेसर को जब स्कूटर से कॉलेज आते देखता, तो सच में मन मचल कर रह जाता। प्रोफेसर साहब उस समय पढ़ाने से इतर अपने स्कूटर की वजह से एक सेलिब्रिटी से कम मुझे नहीं दिखते। मन ही मन उन्हें अपना रोल माॅडल मानता। सोचता काश,अपने पास में भी एक स्कूटर होता, तो काॅलेज के बाईक स्टेंड में प्रोफेसर साहब के स्कूटर के बाजू में ही इसे खड़ा कर क्लास चला जाता और क्लास समाप्त होते ही स्कूटर को झटका देकर झुकाता और फिर किक मार कर स्टार्ट करता और हाॅर्न बजाते हुए फुर्र से उड़ जाता। इस स्टाईल का फिर क्या कहना था ? काॅलेज में अपनी एक अलग पहचान होती। प्रोफेसर साहब की नजर में भी रहता और खासकर लड़कियों की नजर में तो अपना एक हीरो वाला इमेज होता। लेकिन यह संभव नहीं लग रहा था कि जिस घर में ऐसी सोच हो कि विद्या उपार्जन कष्ट सहकर और अपने शौक को दफन कर ही किया जा सकता है,वैसी स्थिति में काॅलेज जाने के लिए बाबूजी एक स्कूटर खरीद कर देंगे। प्रत्येक महीना मनी ऑर्डर से मिले नपे तुले रुपए में मुश्किल से महीना गुजारने वाला अगर सफेद हाथी पालने वाला शौक की कल्पना करे,तो इसका पूरा होना असंभव ही था……….। इसलिए मन ही मन ख़याली पुलाव पकाता रह गया।

Language: Hindi
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