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29 Jun 2016 · 1 min read

ज़िंदगी का रहा तल्ख़ सा ये सफर

ज़िंदगी का रहा तल्ख़ सा ये सफरु
धूप में भी मिला कब जहां में शजर

दर्द कहते तो कहते किसे हम यहाँ
कर लिया हमने पत्थर का अपना जिगर

आँधियाँ जलजले क्या नहीं था सहा
रोज़ हम पर थे बरपे कहर पर कहर

हाथ की दो लकीरें न वश में रहें
एक किस्मत तो दूजी है अपनी उमर

मौज मस्ती में सब अपनी डूबे हुए
है किसे इस जहां में भी किसकी खबर

लिख दिया जो खुदा ने है उतना ही संग
कौन किसका रहा है सदा हमसफर

गिरगिटों की तरह रंग लेते बदल
पर न आया हमें दोस्तों ये हुनर

कट गयी उम्र हँसते हुए निर्मला
साथ मेरे था प्यारा मेरा हमसफ़र

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