Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
2 Apr 2024 · 1 min read

ऋतुराज (घनाक्षरी )

-(घनाक्षरी)
————————–
हरियाली छा रही है,धरा इठला रही है
मदमस्त आम्र कुंज ,कोयलिया गा रही है

बासन्ती बयार चली,झूम रही कली- कली
संदली बही है हवा ,सुख अति पा रही है।।

फूल खिले,मौन हिले,खुशियों को ठाँव मिले
कलियाँ नवीन देखो,घुँघटा हटा रही हैं।।

प्रीत से पलाश पगे,पीर ,पोर- पोर जगे
विरहा की दाह मन,को भी दहका रही है।।

कली खिली कचनार,हर्षित हरसिंगार
टेसू -टेसू हुआ मन,मानिनी लजा रही है।।

भावना भरी सुगंध,सुरभि से अनुबन्ध
रेशा -रेशा ,रोम -रोम,तन हुलसा रही है।।

भ्रमित भ्रमर हुये,मन प्रमुदित हुये
सेना ऋतुराज की ज्यों,दल संग आ रही है ।।
🌻✍🏻
डॉ .रागिनी स्वर्णकार (शर्मा )
इंदौर

Loading...