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2 Apr 2024 · 1 min read

स्वाभिमान

उस रात किसी ने मुझे झिंझोड़कर जगा दिया ,
उठकर देखा तो सामने एक साया था ,

मैंने पूछा कौन हो तुम ?
उसने कहा मैं तुम्हारा स्वाभिमान हूँ !

अपने स्वार्थ के लिए तुम मुझे भूल चुके हो !
अपने आप से तुम समझौता कर चुके हो !
औरों के हाथों की कठपुतली बन चुके हो !

तुम्हे ये पता नहीं है कि एक दिन तुम्हें
नकार दिया जाएगा !
फिर खोया हुआ समय लौटकर
ना आएगा !

अब भी समय रहते,
स्वार्थ की गहरी नींद से बाहर आओ !
अपने अंतस्थ मुझे जगाओ !

वरना, क्षोभ के सिवा कुछ हाथ न लगेगा !
पश्चाताप की अग्नि में यह जीवन जलेगा !

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