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1 Apr 2024 · 1 min read

*संन्यासी (शुभांगी छंद )*

संन्यासी (शुभांगी छंद )

लौकिक बंधन,तोड़ चुका जो,वह संन्यासी,वैरागी।
घर परिजन को,त्याग चुका जो,गगन छू रहा,वितरागी।।

शिखा सूत्र भी,काम न आये,सबसे ऊपर,संन्यासी।
नहीं फलों की,आशा करता,ब्रह्मलीन वह,उरवासी।।

कर्म काण्ड से,यज्ञ होम से,दूर हुआ जो,गुफा बसा।
नफरत करता,नहीं किसी से,प्रेम भाव में,रचा कसा।।

अति पुरुषार्थी,निष्कामार्थी, केवल देखे,शिव काशी।
रमता योगी,बहता पानी,मन संन्यासी,अविनाशी।।

साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।

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