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31 Mar 2024 · 3 min read

शब्दों की चुभन।

एक साथी ने मुझसे पूछा शब्दों और कांटों के चुभन में क्या अन्तर हैं?
मेरा ज़वाब यही था कि इन दोनों में अन्तर सिर्फ इतना है, कांटों की चुभन में दर्द तात्कालिक होती है! वही शब्दों की चुभन में दर्द लंबे वक़्त के लिए होती है। जो आपको बार-बार एक तरह से कराहने के लिए मजबूर करती है। जबकि कांटों की चुभन में ऐसा नहीं होता है। अगर आपको कांटें चुभे हैं तो वो कुछ समय के लिए दर्द देती है। फिर बढ़ते समय के साथ दर्द आपका पीछा छोड़ जाती है। क्योंकि यहाँ दर्द का करार आपके शरीर के अंगों के साथ अल्पकालीन समय के लिए होता है। जिसके बारे में वक़्त के साथ आप खुद को टटोलना छोड़ देते हैं। आप उस दुनिया में नहीं जाते हैं जिसमें आप कुछ समय पहले तक कांटों के दर्द से कराह रहे थे। क्योंकि शरीर के अंगों पर कांटों के दर्द का चुभन पूरी तरह से अप्रभावी हो चुका होता है। जिसके कारणवश ही आप उस ओर पीछे मुड़कर भी नहीं देखते।

लेकिन वही दूसरी ओर जब आपको किसी की शब्द चुभ जाती है तो वो आपको बार-बार दर्द दे जाती है। क्योंकि आपको सामने वाले से इस तरह की उम्मीद नहीं होती है। आपके ना चाहने के वाबजूद शब्दों की चुभन अपनी ओर खींच लाती है। वैसे ही जैसे मानों आपने उनसे साथ जीने मरने की कसमें खा रखी हों। कांटों के दर्द के मुक़ाबले शब्दों के चुभन आपको ज्यादा असर करते हैं। जबकि सच तो ये है कि कांटों के चुभन में आपके शरीर के अंगों में कांटों का प्रवेश होता है। वो आपके शरीर के अंगों को भेदती है। लेकिन शब्दों के चुभन के मामलें में ऐसा नहीं होता है। लेकिन फ़िर भी शब्दों के चुभन ज़्यादा असरदार होते हैं। जो आपको खुद के बारे में सोचने के लिए बार -बार मज़बूर करती है। जबकि आप कई बार ऐसा नहीं करना चाहते हैं। क्योंकि आप जानते हैं कि उस ओर जाना आपके लिए ज़्यादा तकलीफ़ देह होगा लेकिन फ़िर भी आपको वो अपने ओर खींच लाती है। यहाँ आपका मस्तिष्क पर ख़ुद का नियंत्रण नहीं होता है। यही कारण है कि शब्दों के चुभन के मामले में आपको दर्द का सामना दीर्घ समय के लिए करना होता है। क्योंकि यहाँ आप उन लम्हों को जेहन में बार – बार लाते हैं जिसमें आपको कोई शब्द चुभी होती है। जबकि ये है कि आप उसे याद तक में नहीं लाना चाहते हैं। ये आपको ज्यादा इसलिए कचोटती है क्योंकि आप सामने वाले से उस तरह की उम्मीद नहीं रखते हैं।

हमारी यही कोशिश होनी चाहिए कि कोई ऐसी बात हमारे मुख से ना निकले जो सामने वाले के लिए बहुत ज्यादा तकलीफ़ देह हो। क्योंकि शब्दों की चुभन हमेशा दर्द देती है। वो सामने वाले को यादों के झरोखों वाली दुनिया में ले जाती है। जिस दुनिया में तैरना तो दूर की बात है वो प्रवेश करना तक भी पसंद नहीं करते हैं। हमें बात करते हुए इन पहलुओं को ध्यान में रखने की ज़रूरत है। क्योंकि शब्दों के मार जैसा दुनिया में कुछ भी असरदार नहीं। ये ऐसे मामले में होती है जिसमें सामने वाले को आपसे उस तरह की उम्मीद नहीं होती है। आप उनके उम्मीदों के ठीक विपरीत जा चुके होते हैं। जिसके वज़ह से सामने वाले के लिए आपके शब्दों के चुभन से पीछा छुड़ाना आसान नहीं होता है। इसलिए किसी से बातचीत में हमें इन चीजों को ध्यान में रखने की ज़रूरत है।

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