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29 Mar 2024 · 1 min read

कविता -नैराश्य और मैं

कविता -नैराश्य और मैं
डॉ तबस्सुम जहां

नैराश्य परछाई-सा
अतीत की गहराई-सा
बचपन तरुणाई-सा
बहती पुरवाई -सा
यौवन कुम्हलाई-सा
कली मुरझाई-सा।
इश्क़ अंगड़ाई-सा
हुआ रुसवाई-सा
विवाह रसमाई-सा
जग हँसाईं-सा
रिश्ता बेवफाई-सा
नफरती गहराई-सा .
जीवन अलसाई-सा
दम घुटाई-सा
दोस्त करिश्माई-सा
हौसला अफ़ज़ाई-सा।

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