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27 Mar 2024 · 1 min read

आकाश

आकाश
तुम व्यापक हो
अनन्त हो
अपरिमित हो
शान्त और अक्षुण्य हो।

कभी मौन
कभी अति चंचल
कभी कारे
कभी उज्जवल-धवल।

पता नहीं तुम्हारा
यह कैसा समर्पण,
कहीं ऐसा तो नहीं
कि तुम हो
कोई अन्तर्मन का दर्पण।

डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति
बेस्ट पोएट ऑफ दि ईयर।

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