Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
19 Mar 2024 · 3 min read

आत्म यात्रा सत्य की खोज

आत्म यात्रा ”
दो अक्षर क्या पड़ लिये ,मैं तो स्वयं को विद्वान समझ बैठा ।
वो सही कह रहा था ,चार किताबें क्या पड़ लीं अपने को ज्ञानी समझ बैठे ।
उनका क्या जिन्होंने शास्त्रों को कंठस्थ किया है ,जिन्हें वेद ,ऋचाएँ ज़ुबानी याद हैं ।
ज्ञानी तो वो हैं ,जिन्होंने अपना सारा जीवन शिक्षा अद्धयन में लगा दिया जिनके पास शिक्षा की डिग्रियों की भरमार है ,
निसंदेह बात तो सही ,जिन्होंने अपना सारा समय,अपना सारा जीवन अध्ययन कार्यों में लगा दिया।
दिल में ग्लानि के भाव उत्पन्न होने लगे, बात तो सही है , मैं मामूली सा स्नातक क्या हो गया, और शास्त्र लिखने की बात कहने लगा ,बात तो सही थी ,कौन सी डिग्री थी मेरे पास कोई भी नहीं …..चली लेखिका बनने …..
कुछ पल को सोचा मामूली सा लिखकर स्वयं को विद्वान समझने का भ्रम हो गया था मुझे ।
भले ही मैं विद्वान ना सही पर ,परन्तु मूर्ख भी तो नहीं ।

परन्तु बचपन से ही चाह थी , अपने मनुष्य जीवन काल में कुछ अलग करके जाना है ,जीवनोपर्जन के लिये तो सभी जीते हैं ,बस यूँ ही खाया -पिया कमाया जमा किया ,और व्यर्थ का चिंतन ,जब ज्ञात ही है कि जन्म की ख़ुशियों के संग , जीवन की कड़वी सच्चाई मृत्यु भी निश्चित ही है ,उस पर भी भीषण अहंकार ,लोभ ……किस लिये…..जाना तो सभी ने है ,
फिर क्यों ना कुछ ऐसा करके जायें जिससे हमारे इस दुनिया से चले जाने के बाद भी लोग हमें याद रखें ।
समाज के कुछ नियम क़ायदे हैं ,प्रत्येक का अपना परिवेश अपना दायरा है , और आवयक भी है नहीं तो समाज में उपद्रवऔर हिंसा की स्तिथि उत्पन्न हो सकती है ,मेरे भी दायरे सीमित थे । समाज में अपनी छाप छोड़नी थी कुछ अच्छा देना था समाज को । अपने विचारों को शब्दों में ढाल कर लिखना शुरू कर दिया ,सब कहने लगे फ़ालतू का काम हैकिसी को पड़ने का शौक़ नहीं है ,इतना अच्छा भी नहीं लिखा है की लोग पड़े ।
परन्तु मन मैं जनून था ,सिर्फ़ कोई पड़ता ही रहे ऐसा सोचा ही नहीं बस लिखना था ,आत्मा को विश्वास था की अगर मेरा लिखा कोई एक भी पड़ता है ,उसका मार्गदर्शन या मनोरंजन होता है तो ,मेरा लिखा सफल है ।
कहते हैं ना ,करते हम हैं ,कारता वो है ,यानि परमात्मा तो रास्ता दिखता है ,भाव देता है कर्म हम मनुष्यों को करना है ,
यह बात भी सत्य है की संसार एक मायाजाल है ,परन्तु जो इस मायाजाल से ऊपर उठकर कर्म करता है , आत्मा की बात मान कर निस्वार्थ भाव से सही राह पर चलता है , वो कभी निराश नहीं होता ,वह स्थायी ख़ुशी और सफलता पाता है ।

ज्ञान तो अंतरात्मा की एक आवाज़ है ,जो जितना गहरा गया ,उसने उतना पाया ,।
बशर्ते हमारी सोच क्या है ,हमारी सोच का दायरा जैसा होगा ,हम वैसा ही पायेंगे। हमारी सोच जितनी निस्वार्थ और सत्य होगी हम उतना ही गहराई से अंतरात्मा की यात्रा कर पायेंगे, मन की पवित्रता और निस्वार्थता सबसे अधिक महत्वपूर्ण है ।
मिट्टी में मिट्टी मिली
मिट्टी हो गयी ,मिट्टी
मिट्टी ने मिट्टी के महल बनाये
एक दिन राख हो गयी मिट्टी।।
मिट्टी का तन ,
मिट्टी का दिया
तन और दिया दोनों में
प्रकाश ही प्रकाश
प्रकाश जब रोशन करने लगा
संसार तब हुआ जीवन का उद्धार ।

1 Like · 222 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ritu Asooja
View all

You may also like these posts

ख़ुद से सवाल
ख़ुद से सवाल
Kirtika Namdev
शहर में आग लगी है
शहर में आग लगी है
VINOD CHAUHAN
"ऐ जिन्दगी"
Dr. Kishan tandon kranti
बड़ों का साया
बड़ों का साया
पूर्वार्थ
आज भी अपमानित होती द्रौपदी।
आज भी अपमानित होती द्रौपदी।
Priya princess panwar
इंतज़ार
इंतज़ार
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
मां
मां
ARVIND KUMAR GIRI
चंद्रयान ३
चंद्रयान ३
प्रदीप कुमार गुप्ता
"राजनीतिक का गंदा खेल"(अभिलेश श्रीभारती)
Abhilesh sribharti अभिलेश श्रीभारती
बदल गया है प्रेम को,
बदल गया है प्रेम को,
sushil sarna
इश्क़ और इंकलाब
इश्क़ और इंकलाब
Shekhar Chandra Mitra
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Arvind trivedi
यू तो गुल-ए-गुलशन में सभी,
यू तो गुल-ए-गुलशन में सभी,
TAMANNA BILASPURI
*प्रेम का डाकिया*
*प्रेम का डाकिया*
Shashank Mishra
अगर
अगर
Shweta Soni
चाँदनी रात
चाँदनी रात
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
फेसबुक वाला प्यार
फेसबुक वाला प्यार
के. के. राजीव
गौरी सुत नंदन
गौरी सुत नंदन
हिमांशु बडोनी (दयानिधि)
श्रेष्ठ वही है...
श्रेष्ठ वही है...
Shubham Pandey (S P)
भारत और इंडिया तुलनात्मक सृजन
भारत और इंडिया तुलनात्मक सृजन
लक्ष्मी सिंह
जो देखे थे सपने
जो देखे थे सपने
Varsha Meharban
दर्शन की ललक
दर्शन की ललक
Neelam Sharma
बहुत कीमती है पानी,
बहुत कीमती है पानी,
Anil Mishra Prahari
तारीफ किसकी करूं
तारीफ किसकी करूं
दीपक बवेजा सरल
दिल ने,दिल से कुछ ऐसे दिल का रिश्ता तोड़ लिया,
दिल ने,दिल से कुछ ऐसे दिल का रिश्ता तोड़ लिया,
jyoti jwala
मेरे पूर्वज सच लिखकर भूखे सोते थे
मेरे पूर्वज सच लिखकर भूखे सोते थे
Ankita Patel
शेर
शेर
*प्रणय प्रभात*
24/228. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
24/228. *छत्तीसगढ़ी पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
दुखकर भ्रष्टाचार
दुखकर भ्रष्टाचार
अवध किशोर 'अवधू'
#नित नवीन इतिहास
#नित नवीन इतिहास
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
Loading...