कबूतर इस जमाने में कहां अब पाले जाते हैं
हँसना चाहता हूँ हँसाना चाहता हूँ ,कुछ हास्य कविता गढ़ना चाहत
स्त्री
Dr. Chandresh Kumar Chhatlani (डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी)
मृतक समान है मानुष जिसके मन की टूटी आस,
छठ के ई त्योहार (कुण्डलिया छंद)
अमर रहे बाबा भीमराव अंबेडकर...
वो गलियाँ मंदर मुझे याद है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
परीक्षा काल
Mrs PUSHPA SHARMA {पुष्पा शर्मा अपराजिता}
भूल जाती हूँ खुद को! जब तुम...
ख्वाब रूठे हैं मगर हौसले अभी जिंदा है हम तो वो शख्स हैं जिसस
उसने कहा, "क्या हुआ हम दूर हैं तो,?
तुझसे है मुझे प्यार ये बतला रहा हूॅं मैं।