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11 Mar 2024 · 1 min read

*आदत*

ऑथर – डॉ अरुण कुमार शास्त्री
विषय – आदत
शीर्षक – जान जाये पर आदत न जाये

नशे की आदत ने कब किसको छोड़ा है ?
ये तो बिना लगाम का मदमस्त घोड़ा है ।

बहना ने समझाया भाई ने समझाया रे ।
माता-पिता ने जी भर खूब मार लगाया रे ।

हम भी ठहरे पक्के नशेड़ी, बाज कहाँ आने वाले थे ?
झोला उठा के घर से निकले, कहाँ मानने वाले थे ?

पाई – पाई चुक गई भाई, जेब पे पड़ गया ताला रे ।
नशे की आदत ने मेरा तो निकाला दिवाला रे ।

आदत वो आदत भी कैसी आदत, जो छूट जाये आसानी से ।
घर बिकवा दे काम छुड़ा दे , दौलत जाए पानी में ।

इसके चलते दोस्त भी छूटे कोई रहा न रिश्ता नाता ।
भिक्षुक जैसा रूप हुआ अब गुरुद्वारे हूँ रोटी खाता ।

एक दिन ऐसा प्रसंग हुआ खुशकिस्मती से ।
मुझको अचानक मिल गई सखी पुरानी राह में ।

देख के मेरी हालत पहले तो वो भी पहचान न पाई ।
जब पहचाना तो वो भी एक दम बन गई काली माई ।

फिर न जाने कैसे उसका कोमल हृदय पसीजा ?
उसने मेरी ली कक्षा फिर, घर ले जा कर की दवाई ।

कान पकड़ के मुझको उसने उठक बैठक खूब कराई ।
देवी बन कर उसने मेरे जीवन का उद्धार किया,
फिर न पिऊँगा ऐसी उसने कसम दिलाई ।
©️®️

Language: Hindi
163 Views
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