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9 Mar 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

आज की हासिल
ग़ज़ल

मैं तुम्हें लब पर सजाना चाहता हूँ
बाँसुरी तुमको बनाना चाहता हूँ

छोड़कर मैं ये जहां सँग में तुम्हारे
इक अलग दुनिया बसाना चाहता हूँ

शाम-ए-गम इस ज़िन्दगी की साकिया मैं
तेरे कूचे में बिताना चाहता हूँ

खोल दे तू सागर-ए-मीना ऐ साक़ी
आज पीकर लड़खड़ाना चाहता हूँ

लोग क़तरा क़तरा पीते हैं मगर मैं
मय के सागर में नहाना चाहता हूँ

आज पीने से मुझे रोको न कोई
उसका मैं हर ग़म भुलाना चाहता हूँ

बाद मय्यत के करें सब याद प्रीतम
इस तरह दुनिया से जाना चाहता हूँ

प्रीतम श्रावस्तवी

Language: Hindi
195 Views
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