*भक्ति के दोहे*
भक्ति के दोहे
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1)
ईश्वर को क्या चाहिए, निश्छल मन-मुस्कान।
अपने ही धन पर भला, रीझें क्यों भगवान ।।
2)
बस इतना काफी हुआ, पत्र पुष्प जलधार।
अर्पण प्रभु को यों किया, प्रभु ही का संसार।।
3)
धन्य हुआ मन खो गया, तन की सुधि का अंत।
ध्यानावस्था ले चली, प्रभु के लोक अनंत।।
4)
पत्थर कब पत्थर रहा, जीवित अब पाषाण।
प्राण-प्रतिष्ठा ने भरे, पाषाणों में प्राण।।
5)
क्या रक्खा संसार में, नश्वर जिसका रूप।
कहॉं मिले मन ढूॅंढता, अविनाशी जो भूप।।
6)
जिसने पाया भक्ति से, यह भौतिक संसार।
मरता लेता जन्म है, फिर वह बारंबार।।
7)
भौतिक इच्छाऍं लिए, मन में अपरंपार।
मूरख देखो जा रहे, निराकार के द्वार।।
8)
करके देखें एक्स-रे, करें अनूठी खोज।
बैठें दो क्षण मौन में, ध्यानावस्थित रोज।।
9)
सोईं जिसकी इंद्रियॉं, जागा जो दिन-रात।
धन्य-धन्य जो देखता, परमेश्वर साक्षात।।
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451