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22 Feb 2024 · 1 min read

सर्वशक्तिमान से निकटता

प्रभु से परायण
उद्धार कर देता है
मृत्युरूपी संसार-सागर से
वह तो परम प्राप्य है
योग है
चित्त की स्थिरता
न होने पर
निष्ठावान कराता है
अभ्यासयोग.

संभव है
अभ्यासयोग परे हो
सामथ्र्य से
ऐसे में सुलभ है
एक और मार्ग
कर्म परायण का मार्ग
इन सब में असमर्थ होने पर
‘भक्ति योग’ तो है ही
प्रभु से परायण के लिए.

द्वेष न करने वाला
दयाभाव से युक्त
अहंकार से रहित
भक्ति योग का ऐसा साधक
क्षमाशील प्राणी
कैसे प्रिय नहीं होगा
मेरा
वह तो सन्तुष्ट है
मन की वृत्तियाँ
वश में हैं उसकी
और है दृढ़निश्चयी
अपेक्षा से, व्यथा से रहित
भक्ति योग का साधक
मेरा भक्त ही तो है.

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