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22 Feb 2024 · 1 min read

उज्जवल रवि यूँ पुकारता

उज्जवल रवि यूँ पुकारता
अलंकृत रश्मियाँ निहारता
बिछते पथ सैकड़ों सितारें
उदीप्त जुगनू कितने सारे।

श्वेत चाँदनी झिलमिलाई
आस की नव किरण सजाई
महक से आच्छादित फुलवारी
सरसर बह रही वायु न्यारी।

शीतल,सुंदर,प्रवाहित तटिनी
झरझर बहती सी निर्झरिणी
उर्मि रत्नाकर संग हिलोरे
स्वपनिल नयन सुंदर सुनहरे।

सतरंगी इंद्रायुध सजा सँवरा
सुमन सहचर तितली,भँवरा
इक क्षण गगन सानिध्य ठहरता
कांतिपुंज बरबस दुलारता।

✍️”कविता चौहान”
स्वरचित एवं मौलिक

1 Like · 135 Views
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