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22 Feb 2024 · 1 min read

परिवर्तन

तम के गहरे बादलों ने घेरा है
आज निराशा ने डाला यहां डेरा है
थम गयी ज़िन्दगी कैसी ज्वाला है
हर तम के बाद नया सवेरा है

आधुनिकता ने रफ्तार पकड़ी थी
मानसिकता ने उड़ान भरी थी
फैला कैसा यह मायाजाल
क्षण भर में कर दिया बेहाल

हर प्रभात की किरण जब पंख पसारती
नव चेतना जागृत करने को निहारती
नवपल्लव करते धरा पर स्वागत
होता भंवर गुंजार विहग करते मधुर गान

मनुष्य तू क्यों स्तब्ध रह गया देख
देते सब मानवता को नव संदेश
परिवर्तन की आंधी में भर कर जोश
बढ़ चल राही तू यही है उद्घघोष

Language: Hindi
257 Views
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