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22 Feb 2024 · 1 min read

बाकी है

उल्फ़तों की डगर बाकी है |
जुल्म़तो का कहर बाकी है |

मुद्दतों बाद मिलने आयी,
चाह अब भी उधर बाकी है |

हाथ माँ ने रखा जब सर पर,
उस दुवा का असर बाकी है |

मंजिलें दूर हैं क्यों अब तक,
पत्थरों पर सफ़र बाकी है |

हो गयी शाम उम्मीदों की,
रात है ये, सहर बाकी है |

क्यों है शहरों में सन्नाटा अब,
ज़िन्दगी की ख़बर बाकी है |

खत्म “अरविन्द” ना हो किस्सा,
इस कलम का हुनर बाकी है |

✍️अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०

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