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21 Feb 2024 · 1 min read

मन

उलझन में है मन बात मन की कहने दो
रोको मत तुम आज कि लहरों में बहने दो

चाहे दो इल्ज़ाम चाहे लाख सज़ा दो
मन को लेकिन आज फ़क़त मन की करने दो

सब कुछ होगा साफ नया सूरज निकलेगा
आज मगर तुम रजनी का साया सहने दो

वापस आने वाली कोई बची नहीं अब राह
आ जाऊंगा राह कोई फिर से बनने दो

कल न रहूंगा आज मुझे जी भर के कोसो
मुझको भी जज़्बात ज़रा दिल के सुनने दो

बेगानो का शोर ‘अजय’ पहलू में है अब
मुझको अपने आस पास तन्हा रहने दो

अजय मिश्र

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