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21 Feb 2024 · 1 min read

संघर्षी गीत

आशाओं की पगडंडी पर,
चला ढूँढने ठाँव ।
अवसादों की आँधी
रह-रह, डिगा रही है पाँव ।।

संघर्षों की परिपाटी पर,
अभिलाषा ने चित्र उकेरे ।
विहग उड़ चले अम्बर में
फिर, खोज रहे हैं नए बसेरे ।
थक कर हार गए जब
ढूँढें, पीपल वाली छाँव ।।

कुंठाओं के दलदल में
फँस, जाने कितने पाँव सड़े हैं ।
साधन सारे सुख के देखो,
घर में दुख के कैद पड़े हैं ।
तोड़ दुखों का द्वार
मिलेगा, खुशियों वाला गाँव ।।

उत्तर की इच्छा में देखो,
प्रश्न अनेकों रह जाते हैं ।
मोह-जाल में बँधकर आखिर,
शान्ति कहाँ सब जन पाते हैं ?
भागम-भाग भरे जीवन में,
रह जाती है काँव ।।

✍️ अरविन्द त्रिवेदी
महम्मदाबाद
उन्नाव उ० प्र०

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