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21 Feb 2024 · 1 min read

शरद

जा रही है शरद ऋतु
चुपचाप सी
दबे पाँव
लेकर अपने संग
अरमान कितने
ख़्वाहिशें अधूरी
रह गयीं
चाहत के पलों की टूटन
कुछ खो गये
कुछ पाते-पाते नहीं पा सकी
अफ़सोस तो है
पर कुछ सुकून भी है
किसी को कुछ देने का
ख़ुद को खोकर भी
बेशक याद न करे
कोई उसको
कोई अफ़सोस नहीं
जब ज़रूरत न हो
तब
बेक़द्र होकर रुकना भी
अच्छा तो नहीं
बेहतर है चले जाना
शरद का ।

1 Like · 226 Views
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