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20 Feb 2024 · 2 min read

*घर पर उर्दू का पुट, दुकान पर मुंडी लिपि*

घर पर उर्दू का पुट, दुकान पर मुंडी लिपि
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वर्ष 1984 में पिताजी ने पूरा बहीखाता मुंडी लिपि से देवनागरी लिपि में परिवर्तित किया था। पिताजी श्री राम प्रकाश सर्राफ को मुंडी लिपि खूब आती थी। लिखने का उनका अभ्यास अधिक नहीं था लेकिन पढ़ने की जरूरत उन्हें आमतौर पर रोजाना ही पड़ जाया करती थी।

बहीखाते तैयार करने और उन्हें देखकर ग्राहकों को हिसाब बताने का कार्य मुनीम जी (पंडित प्रकाश चंद्र जी) के पास था। वही ग्राहक के आने पर बहीखाते को देखकर यह बताते थे कि ग्राहक की तरफ हिसाब-किताब कितना है। बहीखातों को तैयार करने का काम भी पंडित जी के ही जिम्में था।

दशहरे पर बहीखाता बदला जाता था। यह सारा कार्य मुंडी लिपि में ही होता था। पंडित जी दुकान खोलने के आधे-पौन घंटे बाद दुकान पर आ जाते थे तथा जब शाम को दुकान बंद होती थी, उससे एक-डेढ़ घंटे पहले अपने घर चले जाते थे। अगर पंडित जी अनुपस्थित हैं तो मुंडी लिपि में बहीखाते को पढ़ने का कार्य पिताजी के ही जिम्में रहता था। वही बता सकते थे कि बहीखाते में क्या लिखा है ?

मुंडी लिपि में बहीखाते जब से दुकान शुरू हुई, तब से ही लिखे जा रहे थे ।

पिताजी को हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत और उर्दू का अच्छा ज्ञान था। वह राष्ट्रपति डॉ राधाकृष्णन के अंग्रेजी भाषण के उच्चारण और प्रवाह के अत्यंत प्रशंसक थे। दुकान पर भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और सरदार पटेल के साथ-साथ डॉक्टर राधाकृष्णन का भी बड़ा-सा चित्र उन्होंने लगा रखा था। जब से मैंने होश सॅंभाला, इन चारों चित्रों को दुकान पर सुसज्जित पाया।

वह उर्दू का अखबार भी पढ़ते थे। प्लेट को रकेबी तथा शेविंग को खत बनाना शब्द अक्सर प्रयोग में लाते थे। 9 अक्टूबर 1925 को उनका जन्म हुआ था। इस तरह जीवन के प्रारंभिक पच्चीस वर्ष रियासती नवाबी शासन के अंतर्गत उनके बीते थे। यह रामपुर में उर्दू प्रभुत्व के दिन थे। इस तरह हमारे घर पर बोलचाल की भाषा में उर्दू के काफी शब्द प्रयोग में आते थे।

अपने द्वारा स्थापित सभी संस्थाओं में पिताजी ने भवनों पर नाम अंकित करने में देवनागरी लिपि का ही प्रयोग किया। इससे भी बढ़कर विक्रम संवत को पुराने देवनागरी अंकों के साथ उन्होंने लिखवाया था। यह प्रवृत्ति सुंदरलाल इंटर कॉलेज, टैगोर शिशु निकेतन और राजकली देवी शैक्षिक पुस्तकालय में प्रत्यक्ष रूप से देखी जा सकती है।

मुनीम जी की मृत्यु के बाद भारी-भरकम बहीखाता जो डबल फोल्ड वाला था, उसे मुंडी लिपि से देवनागरी लिपि में उतारने का काम बहुत ज्यादा श्रम-साध्य था। मुश्किल इसलिए भी थी कि पिताजी ने कभी बहीखाता नहीं उतारा था। देवनागरी लिपि में उन्होंने नए वर्ष का बहीखाता तैयार किया और फिर हर वर्ष यह कार्य मेरे लिए कर पाना बहुत सरल हो गया।
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