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20 Feb 2024 · 1 min read

कहाॅ॑ है नूर

कहाॅ॑ है नूर कहाॅ॑ अब नूर-ए-जिंदगी है
हद हो चुकी है पार हया न शर्मिंदगी है
रोज होते हैं उपवास और रोज़े यहां पर
मगर न तो खुदा न खुदा की बंदगी है—कहाॅ॑ है नूर
लोग जाते हैं मंदिर मस्जिद चर्च गुरुद्वारे
इंसानियत छुपाए भटकते मजहबी सारे
भड़कते हैं दंगे फसाद धर्म के नाम पर
होती जगह-जगह ये कैसी दरिंदगी है—कहाॅ॑ है नूर
औलाद के लिए माॅ॑ बाप ये कष्ट उठाते हैं
बड़े होकर माॅ॑-बाप को ये दिन दिखाते हैं
शादी रचा लेते हैं वो घरों से भागकर
उन्हें क्या माॅ॑-बाप झेलते शर्मिंदगी है—कहाॅ॑ है नूर
देखो मयखानों में भीड़ लगती है बहुत
हर मुहल्ले में महफिलें सजती है बहुत
नशे का आदी हो रहा हर नौजवाॅ॑ पर
इसी में खुश उनकी यही तो जिंदगी है—कहाॅ॑ है नूर
‘V9द’ आज हो रहा कैसा व्यवहार है
न खातिरदारी है अब न शिष्टाचार है
मेहमानवाजी में सभी व्यस्त हैं मगर
रिश्ते-नातों में कहाॅ॑ अब संजीदगी है —कहाॅ॑ है नूर

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