वीणा हो गया।
जल उठे साथी तो मेरा चौंड़ा सीना हो गया।
ज्ञानी -गुरु- चौखट तथा श्रम का पसीना हो गया।
बोध की चाहत में जाग्रत भाव से आगे बढ़ा ।
समय ने पुनि पुनि सॅंवारा, दिल ही वीणा हो गया।
पं बृजेश कुमार नायक
विद्यासागर
👉इस मुक्तक को मेरी “पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं” और “नायक जी के मुक्तक” कृतियों में भी पढ़ा जा सकता है।
👉 उक्त मुक्तक को “नायक जी के मुक्तक” कृति के अनुसार परिष्कृत किया गया है।
👉पं बृजेश कुमार नायक की चुनिंदा रचनाएं और नायक जी के मुक्तक कृतियाॅं अमेज़न और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध हैं।