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19 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

हमने इंसाँ में जो ज़हर देखा ।
साँप को उससे बेख़बर देखा ।

हमने इँसाँ में वो ज़हर देखा ।
साँप पर हो गया असर देखा ।

एक बच्चे से डर गया था जो,
साँप का ऐंसा पूरा घर देखा ।

ऊँचे महलों में, ऊँचे लोगों में,
जाने क्या-क्या इधर-उधर देखा ?

ख़ार भी कीमती लगे मुझको,
फूल की तरहा जो बिखर देखा ।

नोच लेता है माँस जो पूरा,
आदमी में भी जानवर देखा ।

थाह मिलती नहीं मेरे मन की,
डूबकर और तैरकर देखा ।

जिनने पैरों से नाप ली दुनिया,
उनके हाथों को भी सिफ़र देखा ।

सिलसिले जीत के लगे खुलने,
ज़ीस्त को जब भी हारकर देखा ।

जो गटागट पिए हलाहल को,
हमने ऐंसा बड़ा जिगर देखा ।

—— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।

Language: Hindi
3 Likes · 2 Comments · 233 Views
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