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19 Feb 2024 · 1 min read

ग़ज़ल

जल रहा है यहाँ जहाँ तन्हा ।
आग तन्हा है और धुआँ तन्हा ।

तन्हा – तन्हा भभक रहे शोले,
सुलगा-सुलगा हरिक रुआँ तन्हा ।

एक चिड़िया है बाम पर घर के,
मैं भी तन्हा हूँ और मकाँ तन्हा ।

भीड़ दिखती है जो शरीरों की,
उनमें जीती है आत्मा तन्हा ।

तन्हा – तन्हा सुलग रहे तारे,
चाँद तन्हा है कहकशाँ तन्हा ।

बाग में भीड़ सिर्फ़ फूलों की,
बाग तन्हा है बागवाँ तन्हा ।

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— ईश्वर दयाल गोस्वामी ।

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