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18 Feb 2024 · 1 min read

आशा की किरण

आशा की किरण
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आशा की वो प्रथम किरण -जो
कल भी जली थी
आज भी जली है…,
और -कल भी जलेगी…!
लेकर आने को धरा पर ,
आशा का इक नया सवेरा,
जरा सा उसे झुका तो दो
हर लूँ उसके तिमिर को -मैं,
जो -कभी कहा था उसने ,
आशा की उस प्रथम किरण से,
जरा सा उसे झुका तो दो
जी भर के चूम तो लूँ उसको -मैं,
पूनम की शीतल रात है -जो,
कुछ सर्द -सर्द कुछ नर्म -नर्म
कुछ सिहरी -सिहरी सी है वो,
आशा की किरण मचल रही है
शबनम की गोद में सिमट रही थी,
कि आया एक पवन का झोंका,
शबनम की बूंदें बिखर गई,
आशा की किरणे चमक उठीं,
आशा की उस प्रथम किरण से,
जन्म हुआ इक नये दिवस का,
आशा और उम्मीदों की वो प्रथम किरण -जो,
कल भी जली थी
आज भी जली है…,
और -कल भी जलेगी…!

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली, पंजाब
©स्वरचित मौलिक रचना
18-02-2024

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