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17 Feb 2024 · 1 min read

* जिन्दगी की राह *

** गीतिका **
~~
जिन्दगी की राह में होती मधुर अनुभूतियाँ।
खिलखिलाते स्नेह की चढ़ते सहज हम सीढियाँ।

चुन लिया करते सहज ही लोग अक्सर देखिए।
जब कभी दिखती उन्हें सागर किनारे सीपियाँ।

भोर की वेला सुनहरी दृश्य मनभावन बना।
ताजगी लाती हवाएं जब खुली हों खिड़कियाँ।

नाव लेकर सिन्धु में जाना नियति है देखिए।
है पता सबको यहां आती रही हैं आंधियाँ।

ऋतु बसंती में खिले हैं फूल सुन्दर हर जगह।
जीत लेती मन सभी का लहलहाती घाटियाँ।

प्रीति का आनन्द अपना हो खुला व्यवहार जब।
माफ़ हो जाती तभी कुछ हो रही गुस्ताखियाँ।

रुक नहीं सकता कभी भी धूप छाया का चलन।
नील नभ पर जब कभी छाई रहीं हैं बदलियाँ।
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १७/०२/२०२४

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